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Thursday 17 December 2015

दुनिया की अनोखी लड़ाई ! गुरु गोविन्द सिंह के पुत्रो की अमर लड़ाई

दुनिया की अनोखी लड़ाई ! गुरु गोविन्द सिंह के पुत्रो की अमर लड़ाई


भारत की धरती वीर भूमि है ! इस धरती में दुनिया के ऐसे ऐसे शुरामाओ ने जन्म लिया है जिनके कारण यह दुनिया आज तक भारत को सम्मान देती है ! आज हम आपको ऐसे ही एक लड़ाई के बारे में बताने जा रहे जिसका जिक्र शायद आपने बहुत ही काम सुना होगा ! हमारी पाठ्य पुस्तकों में तो इसको शायद ही किसी में मिल जाए आपको लेकिन यह ऐतिहासिक घटना हमारे देश मेही घटित हुई है ! आपको दुनिया के अन्दर भी युद्ध , लड़ाईयां हुई है उनमे से यह लड़ाई दुर्लभ लड़ाईयां में से एक लड़ाई है ! और इसकी जो खास बात है वो यह की लड़ाई हमेशा बराबर के वीरों में ही होती है , लेकिन इसमे तो अन्याय की पराकाष्ठ को पार कर के की हुई लड़ाई थी जिस में धोखा और छल था ! लेकिन भारतीय वीरों के किस्से भी तो कोई कम नही है आपको सैकड़ों मिल जाये अगर आप खोज करोगे तो हो सकता है आपके घर के बुजर्ग आपको कुछ ऐसे ही युद्ध के बारे में बताते क्योकि हमको किसी पुस्तक या पाठ्य क्रम में नही मिल पायेगी !
आप कल्पना करो की आपकी लड़ाई हो जाये और आपके सामने 100 व्यक्ति हो और आप हो कम से कम 40 यानि की 100% के 40% आप हो तो उस लड़ाई का परिणाम क्या होगा , आप सुरक्षित रह पायोगे या नही अगर उनका लक्ष्य आप को जिन्दा पकड़ना हो , सोचो शायद आपका जबाब हो की हम हार जायेंगे और हम सुरक्षित भी नही रह पायेंगे ! लेकिन इस अद्भुत लड़ाई में जिसमे एक तरफ थे सिर्फ 42 सुरमा और दूसरी तरफ थी लाखो की दुश्मनो की सेना !
आज  तक ऐसा  युद्ध न देखा होगा नहीं सुना होगा की एक तरफ से तो 42 लोगो की सेना और दूसरी तरफ से 10 लाख लोगो की सेना आज हम आपको बताते है इस ऐतिहासिक लड़ाई के बारे में जिस को जानकार आप सोचने पर मजबूर हो जाओगे की एसा कैसे संभव है !
यह ऐतिहासिक लड़ाई हुई थी काम्कौर के किले पर , चमकौर के किले में गुरु गोविन्द सिंह जी आपने वीर बहादुर सेनानी ओ के साथ और उनके दो पुत्र भी साथ में थे ! गुरु गोविन्द सिंह जी खबर जब किसी ने ओरंगजेब के सूबेदार को बताई की चमकौर के किले में 100 - 150 की सेना की टुकड़ी के साथ गुरु गोविन्द सिंह अपने पुत्रो सहित है तो उनको गिरफ्तार करने का सबसे अच्छा मौका है ! इस खबर को सुनकर वह सूबेदार करीब 42 लाख आतंकियों की सेना लेकर उसको चारो तरफ से घेर लिया ! और किले पर हमला बोल दिया लेकिन दिव्य आत्मा गुरु गोविंद सिंह अपने वीर सेना के जवानो के साथ किले की छत पर से दुश्मनों की सेना पर ऐसा जबाबी हमला बोला की दुशमनो की सेना के अन्दर भागदौड मच गयी ! जब मुगलों की सेना को इस प्रकार से जबाबी हमला मिलता तो उनको सोचने पर मजबूर कर दिया की उसमे 100 -150 की सेना है या ज्यादा की ! उसके बाद मुगलों की सेना ने अपनी रणनीति बदली और किले को पहाड़ी इलाके से पीछे हटकर घेराव डाल दिया ! उसके बाद गुरु गोविन्द सिंह जी ने भी अपनी रणनीति में बदलाव किया और उनसे मैदान में जाकर लड़ने का फैसल लिया ! और उस फैसले में उनको अपनी वीर सेनिकों की टुकड़ी बनाकर लड़ने को भेजा ! लेकिन पहली टुकड़ी जिसकी कमान गुरु गोविन्द सिंह जी अपने विश्वास पात्र को बनाया तो उनके  बड़े पुत्र ने जो कहा उसे सुनकर शायद आपकी आँखों में नमी छा जाएगी ! अजित से अपने पिता गुरु महाराज से निवेदन किया किया की जिस प्रकार से हम आपके पुत्र है और गुरुपुत्र उनके कारण हमारा यह पहला धर्मं है की अपनो की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी हमारी लिये पहले है और इसलिए पहली टुकड़ा का सेना नायक मुझे बनाया जाऐ ! और उसके बाद गुरु गोविन्द सिंह ने अपने पुत्र को यह जिम्मेदार सौप कर उसको युद्ध में विदा किया ! जिस युद्ध का परिणाम हमारी आँखों के सामने था ! मगर धन्य यह भारत भूमि जिस में ऐसे वीर शूरवीर पैदा होते है पिता के चेहरे पर चिंता की लकीर नही थी ना ही पुत्र के चेहरे पर कोई चिंता का चिन्ह ! जब अजित सिंह युद्ध में निकला तो दुशमनो की सेना में खलबली मच गयी लेकिन कब तक यह वीर अभिमन्यु की तरह लड़ता , और वीर गति को प्राप्त कर गया ! उसके बाद जब दूसरी टुकड़ी की बारी आई तो उस टुकड़ी की कमान अपने हाथ में लेनो को आतुर छोटे पुत्र जूझार सिंह ने भी गुरु गोविन्द सिंह जी निवेदन किया की उसको अपने बड़े भाई के अधूरे फर्ज को पूरा करने के लिए उसको इस टुकड़ी के नायक बनाकर दुशमनो से मुकाबला करने को भेजा जाए ! यह इस धरा भारत की महिमा जिस फर्ज को बड़ा भाई पूरा ना कर सका उसको छोटा भाई अपनी जान देकर पूरा करने निकल पड़ता है ! और अंत में जब उनका छोटा पुत्र भी शहीद हो गया तो गुरु गोविन्द सिंह जी स्वय युद्ध जाने का निर्णय लिया लेकिन पञ्च प्यारो की समिति ने उनको जाने से मना कर दिया उनके कपडे पहनकर अपने किसी दुसरे वीर को मुकाबले में भेजने का निर्णय लिया गया , और गुरु गोविन्द को दुसरे के भेष में उस किले से जिन्दा निकल कल ले जाये गया ! लेकिन मुग़ल गुरु गोविन्द सिंह को जिन्दा नही पकड़ सकी !

यह ऐतिहासिक लड़ाई हुई थी भारत जिसको चमकौर की लड़ाई से भी जाना जाता है इसमें जीत किस की हुई तो आप को जानकार आश्चर्य होगा की जीत हुई उन 42 सुरमाओ की
यह लड़ाई मुग़ल सेना नायक  वजीर खान जो की 10 लाख की मुग़ल सेना का सेना नायक था
और दूसरी तरफ थे 42 सुरमा और उनके सेना नायक थे गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज
दुनिया की सबसे महंगी जमीन के बारे में जाने जी को भारत में है
यह लड़ाई 6 दिसम्बर 1704 चमकौर के मैदान में हुई थी और इसका नतीजा यह हुआ की मुगलों की सत्ता जिसको बाबर ने नीव डाली थी उसको उखाड़ फैंका था , और आजाद भारत किया था
मुग़ल बादशाह ओरंगजेब ने भी गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज के सामने घुटने टेके थे ! ओरंगजेब ने महाराज जी से पूछा था की आपने यह सेना कैसे तैयार की तो गुरु महाराज जी ने जबाब दिया की
" चिडियों से मै बाज लडाऊ , गीदड़ को मै शेर बनाऊ "
" सवा लाख से एक लडाऊ , तभी गोविन्द सिंह नाम कहाऊ " 
गुरु गोविंदा सिंह जी जो कहा वो किया तभी तो सभी उनको शीशा छुकाते  है ! अगर आपको यह भारतीय इतिहास नही पता है टी एक बार आप गूगल में " बैटल ऑफ़ चमकौर " सर्च कर के देखा ले यह भारत का सच्चा इतिहास
दुनिया के इतिहास में ऐसा युद्ध देखा है जिसमे एक तरफ 42 सूरमाओं और दूसरी तरफ थी दस लाख लोगो की सेना 

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